अर्थशास्त्र में बहेलिया रक्षक
कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र, राजनीति, अर्थव्यवस्था और सैन्य योजना से संबंधित सांसारिक मामलों का संकलन है। इसमें राजा द्वारा अपनाई जाने वाली राजनीतिक संरचना का विस्तार से वर्णन किया गया है और देश में विभिन्न लोगों की भूमिका पर चर्चा की गई है। यह केवल राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें रक्षा तैयारियों और युद्ध के दौरान आचरण पर भी चर्चा की गई है।
अर्थशास्त्र के विभिन्न भागों और अध्यायों में शिकारियों के बारे में विस्तार से बताया गया है और राजा के प्रति उनके कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। उन्हें विदेशी शत्रुओं, चोरों, डाकुओं और यहां तक कि जंगली जानवरों से रक्षक के रूप में दर्शाया गया है। हम अर्थशास्त्र में बहेलिया शिकारियों के लिए वर्णित कुछ कर्तव्यों का उल्लेख करेंगे। वे इस प्रकार हैं-
इसमें कहा गया है कि चलती वस्तुओं पर तीर चलाने की कला में दक्षता प्राप्त करने के उद्देश्य से, राजा को ऐसे जंगलों में खेलकूद में भाग लेना चाहिए जिन्हें शिकारियों और शिकारी कुत्तों के पालकों द्वारा राजमार्ग लुटेरों, सांपों और शत्रुओं के भय से मुक्त कराया गया हो।
राज्य की सीमाओं पर ऐसे किले बनाए जाएंगे जिन पर सीमा रक्षक (अंतपाल) तैनात रहेंगे और जिनका कर्तव्य राज्य के प्रवेश द्वारों की रक्षा करना होगा। राज्य के भीतरी भाग की निगरानी जाल-रक्षक (वागुरिका), तीरंदाज (वागुरिका), शिकारी( पुलिंद), चंदाल और जंगली जनजातियाँ करेंगी।
चरवाहों को बछड़ों, बूढ़ी गायों या बीमार गायों का उपचार करना चाहिए। उन्हें अपने पशुओं को उन जंगलों में चराना चाहिए जो अलग-अलग मौसमों के लिए चरागाह के रूप में आवंटित किए गए हैं और जहां से शिकारी अपने कुत्तों की सहायता से चोरों, बाघों और अन्य उत्पात मचाने वाले जानवरों को भगाते हैं।
शिकारी और बहेलिये निरन्तर जंगलों में घूमते रहें । उन्हें चाहिए कि वे चोर या शत्रुओं के आने की सूचना पहाड़ पर या वृक्ष पर चढ़कर अथवा शंखदुन्दुभी बजाकर अन्तपाल को पहुँचायें, अथवा शीघ्रगामी घोड़ों पर चढ़कर वे इस सुचना को अन्तपाल तक पहुँचावें ।
यदि जंगल में शत्रु आ जाँय तो मुहर लगे पालतू कबूतरों के द्वारा उसका समाचार राजा तक पहुँचाया जाय, यदि रात को शत्रू जंगल में प्रवेश करें तो आग जलाकर और दिन में धरुआँ लुद्ध करके सूचित करें । विवीताध्यक्ष का कार्य है कि वह द्रव्यवनों और हस्तिवनों के घास, लकड़ी तथा कोयले आदि का भी प्रबन्ध करें, दुर्ग के रास्ते जाने का टैक्स, चोरों से की हुई रक्षा का टैक्स, गोरक्षा का टैक्स तथा इन सभी वस्तुओं के खरीद-फरोक्त का प्रबन्ध भी विवीताध्यक्ष ही करवाये।
शिकारी अपने कुत्तों के साथ जंगलों की छानबीन करेंगे। चोरों या शत्रुओं के आने पर, वे पेड़ों या पहाड़ों पर चढ़कर इस प्रकार छिपेंगे कि चोरों से बच सकें और शंख बजाएंगे या ढोल पीटेंगे। शत्रुओं या जंगली कबीलों की गतिविधियों की सूचना वे शाही परिवार के कबूतरों को मुद्रा में उड़ाकर या अलग-अलग दूरियों पर आग और धुआं छोड़कर भेज सकते हैं। उनका कर्तव्य होगा कि वे लकड़ी और हाथी वनों की रक्षा करें, सड़कों की मरम्मत करें, चोरों को गिरफ्तार करें, व्यापारिक यातायात की सुरक्षा सुनिश्चित करें, गायों की रक्षा करें और लोगों के लेन-देन का संचालन करें।
बहेलिया शिकारी लोगों को जंगली जानवरों से भी बचाते थे। बाघों को मारने के लिए, मदन के रस में मिलाए गए मवेशियों के शवों को, या मदन और कोद्रवा के रस से भरे बछड़ों के शवों को उपयुक्त स्थानों पर फेंका जा सकता था। या शिकारी या शिकारी कुत्तों के पालक बाघों को जाल में फंसाकर पकड़ सकते थे। या कवच पहने हुए व्यक्ति हथियारों से बाघों को मार सकते थे। बाघ के चंगुल में फंसे व्यक्ति को बचाने में लापरवाही करने पर 12 पना का जुर्माना लगाया जाता था। बाघ को मारने वाले को भी इतनी ही राशि इनाम के रूप में दी जाती थी। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन पहाड़ों की पूजा की जा सकती थी। इसी प्रकार के उपाय जंगली जानवरों, पक्षियों या मगरमच्छों के आक्रमण के विरुद्ध किए जा सकते थे।
युद्ध के समय भी बहेलिया शिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। रक्षा व्यवस्था इस प्रकार थी: पहले भाग (चार भागों में से) में प्रधानमंत्री और पुजारी के आवास होने चाहिए; इसके दाईं ओर भंडारगृह और रसोईघर होना चाहिए; बाईं ओर कच्चे माल और हथियारों का भंडार होना चाहिए; दूसरे भाग में वंशानुगत सेना और घोड़ों एवं रथों के आवास होने चाहिए; इसके बाहर बाहेलिया शिकारी और तुरही और आग से लैस कुत्ते पालने वाले होने चाहिए; साथ ही जासूस और पहरेदार भी होने चाहिए; बहेलिये, शिकारी, बाजे तथा अग्नि आदि के इशारे से शत्रु के आगमन की सूचना देने वाले और ग्वाले आदि के वेष में रहने वाले रक्षकों को सबसे बाहर की ओर बसाया जाय । इसके अलावा, शत्रुओं के हमले से बचाव के लिए कुएँ, टीले और कांटेदार झाड़ियाँ बनाई जानी चाहिए।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि बहेलिया शिकारी बाहरी शत्रुओं और चोरों, डाकुओं, जंगली जानवरों जैसे आंतरिक खतरों से बचाव के लिए उपयोग किए जाते थे। बहेलिया लोग गायों और पालतू पशुओं की रक्षा के लिए भी कर्तव्यबद्ध थे। बहेलिया लोगों का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिन्होंने शिकारी या सैनिक के रूप में समाज के रक्षक की भूमिका निभाई है। इसलिए सरकार को इस समुदाय को विलुप्त होने से बचाने और उनके विकास के द्वार खोलने के लिए विशेष नीति बनाने की आवश्यकता है।
Reference
1. Kautilya. Arthashastra. Translated by R. Shamasastry. Bangalore: Government Press, 1915
2. Shri Vachaspati Gairola, Arthshashtra of Kautilya and The Canakya Sutra, 3rd Ed., 1984
1. Kautilya. Arthashastra. Translated by R. Shamasastry. Bangalore: Government Press, 1915
2. Shri Vachaspati Gairola, Arthshashtra of Kautilya and The Canakya Sutra, 3rd Ed., 1984
Very Nice Information
ReplyDeleteBaheliya Samaj Jindabad